Backbencher System: भारत में स्कूलों की एक आम स्थिति रही है कक्षा में आगे की सीटों पर बैठने वाले “Frontbencher” और पीछे की सीटों पर बैठे “Backbencher”। मुझ पर तो आजीवन Backbencher का ही तमगा लगा रहा। शुक्र है कि मैं अब स्कूल में नहीं हूं विशेष रूप से केरल में। क्योंकि केरल के कुछ स्कूलों में इस भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक नया प्रयास शुरू किया गया है।
यानि अब से कोई backbencher नहीं होगा। इन स्कूलों ने कक्षाओं में semi-circle या ‘U’/‘V’ shape में बैठने की व्यवस्था शुरू की है जिससे सभी छात्र शिक्षकों के सामने बैठ सकेंगे और किसी को पीछे नहीं बैठना पड़ेगा। मतलब अगर होमवर्क नहीं भी किया है और स्कूल आ गए तो पीछे बैठकर मुंह छिपाने की सुविधा अब से नहीं मिलेगी।
इस नई व्यवस्था के पीछे प्रेरणा मिली एक Malayalam फिल्म Sthanarthi Sreekuttan से, जिसमें एक सातवीं कक्षा का छात्र, पिछली सीट पर बैठने की वजह से हुए अपमान के बाद, सभी छात्रों को बराबरी से बैठाने का सुझाव देता है।

केरल के Kollam जिले के Valakom स्थित रामविलासम वोकेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल (RVHSS) ने इस विचार को अपनाकर शिक्षा में एक नई मिसाल कायम की है। यहां अब हर छात्र को ‘frontbencher’ अनुभव मिलता है, जिससे सभी को शिक्षक का समान ध्यान और मार्गदर्शन मिलता है। इस व्यवस्था का ये एक advantage भी है कि teacher सभी students पर बराबर focus कर पाएंगे।
फिल्म के निर्देशक वीनेश विश्वनाथन ने इस पहल की सराहना करते हुए बताया कि पंजाब के एक स्कूल ने भी इस व्यवस्था को अपनाया है, जब वहां के principal ने फिल्म को OTT platform पर देखकर अपने छात्रों को भी दिखाया। वीनेश ने कहा, “यह विचार नया नहीं है। पहले भी जिला प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम (DPEP) के तहत कुछ स्कूलों में ऐसी व्यवस्था रही है जो बाद में कहीं खो गई थी।
केरल के मंत्री के. बी. गणेश कुमार, जिनके परिवार द्वारा RVHSS स्कूल चलाई जाती है, ने फिल्म के preview को देखने के बाद इस idea को प्राथमिक कक्षाओं में लागू करने की चर्चा की थी। स्कूल के प्रिंसिपल सुनील पी. शेखर ने बताया कि शुरुआत में एक कक्षा में प्रयोग किया गया, जिससे सकारात्मक परिणाम मिले और फिर इसे सभी निचली कक्षाओं में लागू कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “इस नई व्यवस्था से शिक्षक हर बच्चे को समान ध्यान दे पाते हैं। इससे छात्र भी ज़्यादा सहज महसूस करते हैं और सीधे शिक्षक से discussion कर पाते हैं। अब ‘Backbencher’ जैसी कोई बात नहीं रह गई”। उन्होंने यह भी कहा, “विशेष रूप से निचली कक्षाएं बच्चों के सीखने की शुरुआत होती हैं। ऐसे में यह तरीका उन्हें आत्मविश्वास देता है और पढ़ाई के प्रति झिझक को दूर करता है”।
तीस वर्षों से पढ़ा रही शिक्षिका मीरा ने कहा, “इस नई व्यवस्था से कक्षा अधिक Interactive हो गई है। मैं हर छात्र तक पहुंच पा रही हूं और उन पर विशेष ध्यान दे पा रही हूं। बच्चे भी खुश हैं क्योंकि वे सभी सहपाठियों के चेहरे देख पाते हैं और शिक्षक की बातों पर ध्यान भी अधिक देते हैं।” यह इनोवेशन पारंपरिक क्लासरूम मॉडल की तुलना में अधिक भागीदारी और संवाद पर केंद्रित है, जो पूरे देश में एक नई शिक्षा दिशा की ओर संकेत कर रहा है।
Also Read :-