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18 Apr 2025, Fri

अंगूठा नहीं हस्ताक्षर, कालबेलिया समुदाय के शिक्षित और आत्मनिर्भर होने की कहानी

कालबेलिया समुदाय

Rajasthan: कल्पना करिए कि आप एक ऐसे गांव में रहते हैं जहां आपको साफ़ पानी की किल्लत है, बिजली नहीं आती ठीक से और आप अशिक्षित हैं। केवल आप ही नहीं आपका लगभग पूरा समुदाय ही अशिक्षित है। आप एक आदिवासी हैं और अपना जीवनयापन करने के लिए सांपों का खेल दिखाते हैं और अपने समुदाय के पारम्परिक गीत और नृत्य का सहारा लेते हैं।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के अजमेर जिले के एक गांव की जिसका नाम है भैरवी और जिस आदिवासी समूह का ज़िक्र किया मैंने वो है कालबेलिया जनजाति। कल्पना कीजिए कि आप कालबेलिया जनजाति का हिस्सा होते तो आपका जीवन स्तर कैसा होता? आपके जीवन के सबसे बड़े मुद्दे क्या होते?

आज की खबर कालबेलिया समुदाय में आ रहे बदलाव की खबर है। शिक्षा के क्रांति की खबर है। और उस क्रांति का उदाहरण हैं इस समुदाय की अनेक महिलाएं। उन महिलाओं में एक हैं संजू देवी जो एक आटा चक्की चलाती हैं, 40-50 घरों को आटा पीस कर देती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं संजू देवी अपनी कमाई का सारा हिसाब भी खुद ही लिखती हैं। इससे उनका जीवनयापन सुलभ हुआ है।

28 वर्षीय संजू देवी पहले न लिख सकती थीं, न ही पढ़ सकती थीं। सारा दिन घर में रह कर घर का ही कम किया करती थीं। आज वो लिख सकती हैं, पढ़ सकती हैं और तो और अपना हस्ताक्षर भी कर लेती हैं। कैसे हुआ ये चमत्कार? नहीं ये चमत्कार नहीं है। ये मेहनत है, ये प्रेम है, करूणा है। और इस प्रेम, करूणा और मेहनत की सूत्रधार है मंथन संस्था। महिलाओं में शिक्षा की लौ जलाने वाली ये संस्था अजमेर जिले के भैरवी गांव में समता नाइट स्कूल लेकर आई है।

सही सुना आपने – नाइट स्कूल। जब ये महिलाएं दिन के अपने सभी दायित्वों से मुक्त हो जाती हैं तो रात में ये हिंदी, गणित और व्यावहारिक जीवन कौशल सीखती हैं। और इनको सीखाने के लिए कई तरह के खेलों और गानों का भी सहारा लिया जाता है जिससे शिक्षित होना आसान और मनोरंजक भी लगे।

29 वर्षीय रामेश्वरी देवी को मंथन संस्था ने समता नाइट स्कूल के माध्यम से न केवल बुनाई करना सीखाया है बल्कि एक सिलाई मशीन भी दी है। रामेश्वरी देवी अब कपड़े सिल कर पैसे कमा लेती हैं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। वो यात्रा करते समय अब signboards पढ़ने में सक्षम हैं और मनरेगा रजिस्टर में अपने नाम पर हस्ताक्षर कर लेती हैं।

32 वर्षीय सरजू देवी तो एक कदम आगे बढ़कर अंग्रेजी सीखने की इच्छुक हैं। उनका मानना है कि नाइट स्कूल उनके लिए जीवन बदलने वाला साबित हुआ है। अब वो अकेले ही यात्रा करने में मजबूत महसूस करती हैं और अपनी एक दुकान चलाकर अपने खर्चों का वहन कर पा रही हैं।

मंथन जमीनी स्तर पर काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था है। मंथन ने कालबेलिया समुदाय की आवश्यकताओं को समझते हुए एक वर्ष पूर्व समता नाइट स्कूल की शुरुआत की जो कि विशेष रूप से महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित है। शुरुआती हिचक के बाद महिलाओं ने खुले मन से समता नाइट स्कूल को अपनाया और अब जीवन में तब्दीली का आनंद ले रही हैं।

जो महिलाएं पहले घरों से बाहर नहीं निकलती थीं आज वो न केवल पढ़ी लिखी हैं बल्कि जागरूक भी हैं। जागरूक हैं स्वास्थ्य को लेकर, अपनी सांस्कृतिक धरोहर को लेकर और सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले विभिन्न लाभों को लेकर।

मंथन संस्था के founder-director तेजाराम माली का मानना है कि महिलाएं स्कूल को बनाए रखने और अपने बच्चों की शिक्षा की वकालत करने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। वे आज सशक्त हैं, अपने अधिकारों के लिए बोलने और अपनी बात सुनाने के लिए तैयार हैं।

इस पूरी खबर पर आपकी क्या राय है? क्या आप अपने आसपास के क्षेत्र में इस तरह के बदलाव होते देख रहे हैं? यदि हां तो कमेंट करके ज़रूर बताएं। और यदि ना तो कमेंट करें कि आपको अपनी locality में कौन से आवश्यक मुद्दे दिखते हैं जिन पर काम करने की आवश्यकता है।

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