हरिद्वार: उत्तराखंड के हरिद्वार में प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में रविवार सुबह एक भयानक भगदड़ मच गई, जिसमें 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। भगदड़ मंदिर मार्ग की सीढ़ियों पर हुई, जो मुख्य मंदिर की ओर जाती है।
पुलिस का कहना है कि भीड़ में करंट लगने की अफवाह फैलने से अफरा-तफरी मच गई, जिससे भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। जब लोग मंदिर में दर्शन कर रहे थे, तभी भीड़ एकदम से बहुत ज़्यादा हो गई। लोगों ने एक-दूसरे को धक्का देना शुरू कर दिया, जिससे कई लोग गिर पड़े और भगदड़ मच गई।
हादसे की खबर मिलते ही पुलिस और बचाव टीम तुरंत वहां पहुंची और घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया। दृश्यों में घायल श्रद्धालुओं को एंबुलेंस के जरिए अस्पताल ले जाते हुए देखा जा सकता है। कुल घायलों की संख्या फिलहाल 55 बताई जा रही है। दुर्घटना पर संवेदना व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दुख जताया।
मृतकों के परिजनों को मिलेंगे 2-2 लाख रुपये
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी दुर्घटना को लेकर बयान आया है। उन्होंने ट्वीट कर ये भी बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये एवं घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। साथ ही घटना के मजिस्ट्रियल जांच के निर्देश भी दिए हैं।
इस वर्ष जून में जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान भगदड़ में 3 लोगों की जान गई थी और करीब 50 लोग घायल हुए थे। वहीं जनवरी में महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में 30 लोगों की मृत्यु हो गई थी और घायलों की संख्या तो सैकड़ों में थी।
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सरकार Religious Tourism या Spiritual Tourism कह कर हमारे धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है। यानि सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक भक्त ईश्वर के दर्शन करने आएं। भक्त मंदिरों में तो चढ़ावा चढ़ाएंगे ही। साथ में होटल में रूकेंगे, खाना खाएंगे, आस-पास के इलाकों में घूमेंगे। मतलब स्थानीय अर्थव्यवस्था को बम्पर फायदा।
देखिए बात यदि अर्थव्यवस्था की हो तो मामला बिलकुल ठीक है लेकिन फिर इसको व्यापार बोलिए सीधा-सीधा, इसमें भक्ति, श्रद्धा, अध्यात्म जैसी तो कोई बात नहीं रह गई। कुल मिलाकर सरकार भक्तों में भक्त नहीं ग्राहक देखती है। और सीक्के का दूसरा पहलू भी देख लेते हैं। भारत में लोग अमीर हो रहे हैं या नहीं लेकिन इतना पैसा लगभग भारतीयों के पास है कि भूखे नहीं मरेंगे। ऊपर से मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया का ज़माना। माहौल इतना अनुकूल हो तब भक्ति भाव जागृत होता है और एक आम इंसान भक्त कहलाने लगता है। तब वो निकलता है धार्मिक पर्यटन पर।
कितना समन्वय दिख रहा है सरकार और तथाकथित भक्त के बीच। बस इस पूरी प्रक्रिया में ईश्वर खो चुके हैं, भक्ति नदारद है। बाज़ार, सोशल मिडिया और स्टेटस का खेल चल रहा है। Religious tourism अपनेआप में एक घटिया शब्द है। धर्म केंद्रित होता है व्यक्ति की चेतना पर, बोध पर, जीवन दर्शन पर। हमने मिलकर इसको भी मात्र पर्यटन बना दिया। मौज-मस्ती का साधन। भोग-विलासिता में एक नया आयाम। घूमने तो हम निकलते ही हैं, साथ में भक्त होने का एक तमगा जुड़ जाए तो क्या बुराई है?
खैर, ये मुद्दा तो थोड़ा बौद्धिक स्तर का हो गया। ज़मीन की बात करें तो कम-से-कम लोगों की सुरक्षा का तो ख्याल करिए। आपके तथाकथित Religious Tourism में Safety Measures का कोई प्रावधान नहीं है क्या? और शायद जवाबदेही का तो बिल्कुल भी नहीं है।
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