मणिपुर में president’s rule यानि राष्ट्रपति शासन लग चुका है। इसी के साथ राज्य में 11 वीं बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। दरअसल राज्य में करीब 2 साल से चल रही हिंसा के बाद 9 फरवरी को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद से राज्य की बीजेपी इकाई नए मुख्यमंत्री चेहरे पर निर्णय लेने में असफल रही और अगला विधानसभा सत्र पिछले विधानसभा सत्र के बीच के 6 महीने के अंतराल को पूरा कर रहा था जिसके कारण राष्ट्रपति शासन लगाना एक अनिवार्यता बन गई।
अनुच्छेद 174(1)
संविधान का अनुच्छेद 174(1) कहता है कि किन्हीं दो विधानसभा सत्रों के बीच का अंतराल 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। मणिपुर में आखिरी विधानसभा सत्र 12 अगस्त 2024 को हुआ था। उसके बाद अगला विधानसभा सत्र शुरू करने की आखिरी तिथि 13 फरवरी थी। चूंकि 13 फरवरी तक नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बन पाई इसलिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
राज्य की विधानसभा को निलम्बित किया गया
राज्य की विधानसभा को निलम्बित किया गया है न कि भंग किया गया है। यानि राष्ट्रपति शासन हटाए जाने के बाद विधानसभा वापस कायम हो जाएगी उन्हीं सदस्यों के साथ जो राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले थे।
अनुच्छेद 356
राज्य में 11 वीं बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया गया है यानि राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है। मणिपुर में सबसे पहले राष्ट्रपति शासन 12 जनवरी 1967 से 19 मार्च 1967 तक 66 दिनों के लिए लगाया गया था। मणिपुर में सबसे लम्बे समय के लिए राष्ट्रपति शासन 17 अक्टूबर 1969 से 22 मार्च 1972 तक लागू किया गया था जो 2 साल 157 दिनों तक था। और आखिरी बार राष्ट्रपति शासन लगा था 2 जून 2001 से 6 मार्च 2002 तक जो कुल 277 दिनों तक था।
मैतेई और कुकी
11 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जाना बताता है कि मणिपुर कितना अस्थिर राज्य है। राज्य में दो प्रमुख समुदाय हैं – मैतेई और कुकी। इन के बीच हमेशा संघर्ष बना रहता है जो अस्थिरता का प्रमुख कारण है। मैतेई समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं और राज्य की 65% आबादी इनकी ही है। वहीं कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों में रहते हैं और राज्य की 35% आबादी इनकी है।
मणिपुर राज्य का लगभग 90% हिस्सा पहाड़ी है। दोनों समुदायों के बीच संघर्ष का कारण अपने क्षेत्रिय और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करना और विकास में बराबर भागीदारी रखना है। मैतेई समुदाय अपने पैत्रिक जमीनों, परम्परा, संस्कृति और भाषा की रक्षा हेतु अपने लिए scheduled tribe यानि अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग कर रहा है। उनका तर्क है कि 1949 में भारत के साथ विलय से पहले तक उन्हें scheduled tribe का दर्जा प्राप्त था। इसके अलावा म्यानमार से लगातार कुकी refugees के influx के कारण राज्य की demography में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। मणिपुर म्यानमार से लगभग 400 किलोमीटर की सीमा साझा करता है।
दूसरी तरफ कुकी समुदाय का मानना है कि मैतेई पहले ही राज्य में एक प्रभावशाली समुदाय है। यदि उन्हें scheduled tribe का दर्जा प्राप्त हो गया तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुकी और नागा समुदायों को मिलने वाला आरक्षण मैतेई समुदाय के साथ बंट जाएगा। और तो और मैतेई समुदाय को पहाड़ों में ज़मीन खरीदने का अधिकार भी प्राप्त हो जाएगा।
हाई कोर्ट और हिंसा
जो ताज़ा हिंसा चालू हुई वो मणिपुर हाई कोर्ट के अप्रैल 2023 में आए एक आदेश के कारण हुई जिसमें उन्होंने मणिपुर सरकार से मैतेई समुदाय को scheduled tribe का दर्ज़ा देने पर विचार करने का सुझाव दिया था। इस हिंसा में अब तक 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और द हिंदू के अनुसार करीब 60 हज़ार लोग विस्थापित हो चुके हैं।
विपक्ष हमलावर
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होना ये साबित करता है कि देर से ही सही लेकिन भाजपा ने मणिपुर का शासन करने में अपनी अक्षमता को स्वीकार कर लिया है।
अब प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर के प्रति अपनी सीधी जिम्मेदारी को नकार नहीं सकते हैं। क्या उन्होंने अंततः राज्य का दौरा करने का मन बना लिया है, और मणिपुर और भारत के लोगों को शांति और सामान्यता बहाल करने की अपनी योजना समझाएंगे?
फिलहाल हिंसा शुरू होने के करीब 2 साल बाद भी मणिपुर राज्य का आम आदमी डर और अव्यवस्था के साए में जी रहा है और अब राजनैतिक संकट का भी सामना करने पर मजबूर है। ये कब तक चलेगा कुछ पता नहीं।
इस पूरे मुद्दे पर मणिपुर की राज्य सरकार जो अब नहीं है और केंद्र सरकार की अबतक जो भूमिका रही है उसको आप कैसे देखते हैं कमेंट करके अवश्य बताएं।
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