14 जनवरी 2025 का दिन, मकरसंक्रांति का शुभ अवसर। प्रयागराज में भव्य एवं पवित्र कुम्भ मेले का आयोजन। और कुछ ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं हमें। विडियो में देखा जा सकता है कि आचार्य प्रशांत जी की सभी किताबें जलाई जा रही हैं। इनमें से अधिकांश धार्मिक किताबें हैं, जैसे कि भगवद्गीता, शिवोहं, हे राम, अष्टावक्र गीता, इत्यादि।
लेकिन इन किताबों को क्यों जलाया गया। जलाने वाले लोग कौन हैं? इसका जवाब भी कुछ हद तक विडियो से पाया जा सकता है। एक पोस्टर दिखाई दे रहा है जिसपर हाथ से लिखा गया है, “कुम्भ पाखंड है” और नीचे आचार्य प्रशांत का नाम लिखा है। ये पोस्टर लोगों के गुस्से का कारण बना और पूरा पुस्तकों का स्टॉल तहस-नहस कर दिया गया। स्टॉल पर मौजूद स्वयंसेवियों जिनमें अधिकतर 18-19 साल के छात्र, छात्राएं थे, के साथ मारपीट की गई, अभद्रता हुई। सभी किताबें जला दी गईं।
लेकिन क्या मामला केवल इतना-सा ही है। नहीं ऐसा प्रतीत नहीं होता। हमने विभिन्न मंचों पर आचार्य प्रशांत जी के द्वारा कुम्भ के ऊपर कहे गए उनके वक्तव्यों को जानने और समझने की कोशिश की, उनके लेख भी पढ़े। तो फिर वो पोस्टर जिस पर आचार्य प्रशांत जी के नाम के साथ कुम्भ पाखंड है लिखा था, कहां से आया। हमें तो आचार्य प्रशांत जी की किसी पुस्तक में, लेख में या विडियो में ऐसा कोई वक्तव्य नहीं मिला।
वो पोस्टर कहां से आया इसके संदर्भ में हमें X यानि Twitter पर एक ट्वीट मिला। इस ट्वीट को लिखा है मोहन सिंह नाम के एक व्यक्ति ने, जो की ट्विटर पर अपना परिचय फौज से रिटायर्ड व्यक्ति के रूप में देते हैं। आइए इनका ट्वीट का कुछ अंश पढ़ते हैं।
महाकुंभ में भी स्टॉल लगाने की तैयारियां चल रही थीं। एक देवी जी आईं, जिन्हें कोई नहीं जानता था, बोलीं कि वे पोस्टर अच्छा बनाती हैं, और आचार्य जी को बहुत पढ़ती हैं। वहां मौजूद स्वयंसेवकों में कोई उन्हें जानता नहीं था। पर देवी जी ने पूरी निष्ठा प्रदर्शित करी, और आग्रह कर के एक पोस्टर बना दिया। उस पर उन्होंने कुछ लिखा जिसकी शुरुआत थी, “कुंभ मेला अंधविश्वास है”, और नीचे आचार्य प्रशांत का नाम लिख दिया। ये पोस्टर देखकर स्वयंसेवकों ने कहा कि ऐसी तो कोई बात आचार्य जी ने आज तक कभी कही ही नहीं। कहीं कही तो, या लिखी हो, तो दिखा दीजिए। इतना ही नहीं, आचार्य जी ने तो इससे मिलती-जुलती भी कोई बात कभी कही ही नहीं। तो देवी जी वहां से चली गईं। उनका पोस्टर रिजेक्ट कर दिया गया। लगभग 20 अन्य पोस्टर थे सुंदर उक्तियों के, वे कुंभ में प्रदर्शित करने को चुने गए।
अगले दिन सुबह पोस्टरों का बंडल कुंभ में स्टॉल पर पहुंचता है। स्वयंसेवा हेतु अन्य दिनों की अपेक्षा आज बहुत भीड़ है। हमारी सैकड़ों पुस्तकें मात्र एक घंटे में वितरित हो चुकी हैं। और सबसे अधिक पुस्तकें लेने वाले कौन हैं? साधुजन। संत और साधु लोग प्रसन्नचित्त होकर हमारी पुस्तकें पढ़ भी रहे हैं, हमें आशीर्वाद दे रहे हैं, और पुस्तकें ले भी जा रहे हैं। स्वस्थ, सुंदर, धार्मिक माहौल है।
इसके बाद जो होता है वो किसी सनसनीखेज जासूसी उपन्यास जैसा है। एक व्यक्ति अचानक आता है, पोस्टरों के बंडल में से सीधा एक पोस्टर निकालता है, और हम हैरान हो जाते हैं, कि ये वही पोस्टर है जो उन देवी जी ने बनाया था और हमने रिजेक्ट कर दिया था। वो व्यक्ति उस पोस्टर को उठाता है और उसे सर के ऊपर रखकर जाकर चिल्लाते हुए सीधे जनता और साधुओं को दिखाने लगता है। हम पीछे से उससे कहते हैं कि पोस्टर को वापस रख दे, और कोई दूसरा पोस्टर उठा ले। हम आपस में ताज्जुब करते हैं कि ये पोस्टर यहां आ कैसे गया, और इसे तो फाड़ देना चाहिए। ये सब एक- दो मिनट के अंदर हो जाता है। इतनी देर में वो व्यक्ति उस पोस्टर को सीधे एक साधु के मुंह के सामने दिखाने लगता है। इतना ही नहीं, दो लोग प्रकट हो जाते हैं जो इस पूरी चीज़ की वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू कर देते हैं। ये सब दो मिनट के अंदर हो रहा है, और स्टॉल के ज़्यादातर लोग अभी जनता से बातें करने में व्यस्त हैं।
इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, 8-10 लोग कहीं से एक जत्था बनाकर आते हैं, और पोस्टर वाले व्यक्ति से वो पोस्टर ले लेते हैं। वो व्यक्ति तेज़ी से चलकर आगे भीड़ में गायब हो जाता है। ये 8-10 लोग चिल्लाने लगते हैं, और धार्मिक नारे लगाने लगते हैं। और पास से गुज़र रहे नागा साधुओं को भी जाकर भड़काने लगते हैं। फिर बात बढ़ जाती है। पता नहीं भड़काने वालों ने नागा साधुओं से क्या कहा, कि वे आकर स्टॉल की किताबें फेंकना शुरू कर देते हैं। तभी उन्हीं 8-10 में से कोई आता है जो एक युवा नागा बाबा के हाथ में माचिस दे देता है। और फिर किताबों का दहन शुरू हो जाता है। साथ ही स्वयंसेवकों पर हमला और स्टॉल की टेबल कुर्सी की तोड़फोड़ भी।
कौन सी किताबें जलाई जाती हैं?
भगवद गीता भाष्य, शिवोहम, अष्टावक्र गीता, दुर्गा सप्तशती, गुरबाणी, हनुमान चालीसा का वेदान्तिक अर्थ, महाभारत, मुण्डक उपनिषद, ॐ नमः शिवाय, शून्यतासप्तति, तत्वबोध इत्यादि।
स्टॉल पर स्वयंसेवकों में लड़कियां भी थी, महिलाएं भी थीं, दुर्व्यवहार हुआ, घूँसे और थप्पड़ तो क्या, ज़मीन पर गिरा कर लातें मारी गईं। आम जानता में से बहुत लोग थे जो जानते थे कि स्वयंसेवक अच्छा धार्मिक काम कर रहे हैं, तो आम जनता ने बीचबचाव की कोशिश की। तो आम जनता को भी पीट दिया गया। स्थति ये थी कि अगर हमारे पक्ष में साधु भी खड़े हो जाते तो ये लोग शायद साधुओं पर भी प्रहार कर देते। डंडों, टेबल की टाँगों का हथियारों की तरह इस्तेमाल हुआ। और वही 8-10 लोग और जनता को हमला करने के लिए और भड़का रहे थे। खूब चोटें खाने के बाद किसी तरह हम हटे।
भारत में धार्मिक किताबों को बहुत बार जलाया गया है, पर पहले जलनेवाले विदेशी होते थे, मुसलमान होते थे। बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा जलाई थी। पर आज जलाने वाले पूरी तैयारी के साथ सनातनी नारे लगाते हुए सनातन धर्म की पवित्र पुस्तकों को जला रहे थे।
मेरे जैसे फौजी देश के बाहर के दुश्मनों से तो लड़ लें, पर देश के भीतर के खतरे से कैसे निपटा जाए, ये हमें सीखना बाकी है। तो ये रहा पूरा ट्वीट मोहन सिंह का इस पूरे प्रकरण पर। और हमने भी आपके सामने पूरा मुद्दा खोलकर रख दिया है। बाकी आपका अपना विवेक है। आप इस पूरे मुद्दे को किस प्रकार देखते हैं, आचार्य प्रशांत जी को लेकर, उनकी शिक्षा को लेकर आपकी क्या राय है, हमें कमेंट करके अवश्य बताएं।
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