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Maharashtra Hindi Language Controversy: प्राइमरी स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने का आदेश वापस

The Swadharm by The Swadharm
July 14, 2025
in न्यूज़
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Maharashtra Hindi Language Controversy
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Maharashtra Hindi Language Controversy: महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी बोलनी है। भाषा को लेकर बवाल मचा हुआ है। अक्सर मचा रहता है अलग-अलग गैर हिंदी भाषी राज्यों में। इस बार केंद्र है महाराष्ट्र। अलग-अलग विडियोज़ सोशल मीडिया पर वायरल हैं जिसमें लोगों को पीटा जा रहा है। क्यों पीटा जा रहा है? क्योंकि वे महाराष्ट्र में रहते हैं, महाराष्ट्र में कमाते हैं लेकिन मराठी नहीं बोलनी आती।

भाषा को लेकर बवाल पुराना है, कम-से-कम आज़ादी जितना पुराना। लेकिन ताज़े बवाल का उद्गम कहां हुआ?

क्या है विवाद?

दरअसल 16 अप्रैल को महाराष्ट्र राज्य सरकार ने एक आदेश जारी किया। आदेश ये जारी किया कि महाराष्ट्र राज्य बोर्ड के सभी मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी अब एक अनिवार्य तिसरी भाषा है। आदेश में कहा गया है, “वर्तमान में राज्य के सभी अंग्रेज़ी और मराठी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से कक्षा 4 तक दो भाषाएँ पढ़ाई जा रही हैं। राज्य शिक्षा ढाँचा 2024 के अनुसार, अब कक्षा 1 से कक्षा 5 तक हिंदी को सभी अंग्रेज़ी और मराठी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया जाएगा।”

अब तक अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूल बोर्ड के स्कूलों में तीसरी भाषा केवल5 वीं कक्षा में ही शुरू की जाती थी। अन्य माध्यम के स्कूलों में पहले से ही प्राथमिक शिक्षा में तीन-भाषा नीति लागू है।

अब इसको लेकर दो आपत्तियां आईं। पहली – कक्षा 1 से कक्षा 5 तक यानि प्राथमिक स्तर पर तिसरी भाषा को लागू न किया जाए। और दूसरी आपत्ति थी अंग्रेजी का थोपा जाना।

हिंदी थोपने का प्रयास

क्षेत्रीय भाषाई समूहों, academis, civil society के सदस्यों और प्रमुख साहित्यिक व्यक्तित्वों ने इस कदम के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिसे ‘हिंदी थोपने का प्रयास’ और ‘सांस्कृतिक वर्चस्व की ओर कदम’ बताया गया। महाराष्ट्र सरकार की अपनी भाषा समिति ने भी सरकार को पत्र लिखकर इस निर्णय को तुरंत रद्द करने की मांग की।

उनका कहना है कि प्राथमिक विद्यालय में बच्चों पर तीन भाषाएँ सीखने का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। मराठी अभ्यास केंद्र के दीपक पवार ने कहा, “हिंदी थोपने की ज़रूरत क्यों है? यह सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करने का एक संगठित प्रयास है। यह आरएसएस की ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान’ की योजना के अनुरूप है। महाराष्ट्र में मराठी मानूस अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के लिए खड़ा रहेगा। यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जैसे भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का आंदोलन था। पूरा राज्य सरकार द्वारा हिंदी थोपे जाने के खिलाफ खड़ा है।”

सरकार बैकफुट पर विवाद के बाद सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए दो विवादास्पद सरकारी निर्णयों को रद्द करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तीन-भाषा नीति की समीक्षा के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की घोषणा की और कहा कि सरकार उनकी रिपोर्ट को स्वीकार करेगी।

हालांकि शिक्षाविदों ने डॉ. जाधव की स्कूल शिक्षा में विशेषज्ञता पर सवाल उठाए हैं और समिति के गठन के साथ-साथ प्राथमिक शिक्षा में तीन-भाषा नीति थोपने के निर्णय को भी रद्द करने की मांग की है। विपक्षी दलों ने कहा है कि सरकार को तीन-भाषा नीति को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए।

हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषा और हिंसा

एक ओर तो कोशिश है कि भारत के अलग-अलग भागों की भाषा सहेज कर रखी जाए, उनको बढ़ाया भी जाए लेकिन साथ में एक केंद्रीय सूत्र भी होना चाहिए जिससे भारत के अलग-अलग राज्यों के लोग एक-दूसरे से संवाद कर सकें। वो केंद्रीय सूत्र, केंद्रीय भाषा अंग्रेजी न होकर हिंदी हो। क्योंकि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिंदी न केवल अपने देश की भाषा है बल्कि हिंदी भाषी लोगों की जनसंख्या बाकी भाषाओं के तुलना में सबसे अधिक है।

वहीं दूसरी ओर हिंदी को थोपने का आरोप लगता आ रहा है उन राज्यों से जहां हिंदी आम जनमानस की भाषा नहीं है।

लेकिन इस पूरी कहानी में हिंसा का स्थान कहां पर है? मार-पीट गुंडागर्दी का स्थान कहां पर है? खुलेआम दादागिरी करना, चलते-फिरते किसी छोटे दुकानदार या मजदूर को पकड़ के दो थप्पड़ जड़ देना, उठक-बैठक कराना इस देश के महान संविधान के महान मौलिक अधिकारों की इतनी आसानी से अवहेलना कैसे कर दे रहा है?

दूसरी बात हिंदी भाषी राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में जनसंख्या अधिक और दक्षता कम क्यों है, गरीबी अधिक क्यों है, लोगों के पास काम क्यों नहीं है? हिंदी भाषी आम व्यक्ति सशक्त क्यों नहीं है? ये तमाम सवाल हैं और हर सवाल का जवाब मात्र ये नहीं हो सकता कि सरकार या नेता निकम्मे हैं। ज़िम्मेदारी अब हमें खुद भी लेनी पड़ेगी।

Also Read :- RailOne App : क्या-क्या मिलेंगी सुविधाएं?

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